भारतीय भ्रस्टाचार और हमारा योगदान
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भ्रस्टाचार अभी भी 'हॉट टोपिक ' है बाज़ार में . आप कुछ भी कहो कुछ भी लिखो..चलेगा ही नहीं दौड़ेगा भी ...आधे जानते ही नहीं की 'लोकपाल बिधेयक' है क्या ?? और आधो को रोटी ज्यादा ज़रूरी लगाती है इस बिधेयक से. खैर इसमे भी कोई बुरे सबकी अपनी अपनी मजबूरी है. कोई शौक से भूखा है और कोई मजबूरी से भूखा है . तो मै पिछले बार भी कहा था की हम भारतीय बहुत साड़ी चीज़े शौक से करते है. हालाकि ये अज़ब बात है की हमें हर एक दुसरे का शौक अजीब सा लगता है और इसी के लिए हम दूसरो की आलोचना करने के नए तरीके भी दूढ़ लेते है. उदहारण के लिए, भारत का हर नागरिक लालू प्रसाद यादव की आलोचना करता है की उन्होंने राबड़ी देवी को रसोई से निकाल के मुख्या मंत्री बना दिया (और दूसरे राज्य के लोग बड़े रस के साथ ये बात भी करते है की ये सिर्फ बिहार में ही संभव है ) पर वो लोग कभी नहीं बात करते की किस तरह राजीव गाँधी 'कॉकपिट' से '७ रेस कोर्स रोड' कैसे पहुच गए ? राहुल गाँधी को राजनीती करते हुए जुमे जुमे चार दिन भी नहीं हुए की लोग कैसे कहने लगते है की यही अगले प्रधान मंत्री है. स्थिति तो यहाँ तक पहुच जाती है की हमारे बर्तमान महा बिद्वान प्रधान मंत्री जी को भी कहना पड़ता है की राहुल हमारे अगले प्रधान मंत्री है. आधार क्या है?? और अगर लालू प्रसाद यादव ने गलत किया तो ये लोग क्या क्या कर रहे है?? पर दुर्भाग्य से ये लोग पढ़े लिखे है. इनके पास आचे शब्द है इसलिए इन्होने अछि छवि बनाई है. इस लिए ये जो भी कहते है वो अछा हो जाता है (और अंग्रेजी में कोई बुरा कहता है क्या :) ). तो मै शौक की बात कर रहा था. तो इस तरह से हम शौकिया गलत को सही सिद्ध करके चलते रहते है .
तो अभी हम भ्रस्टाचार के बिरुद्ध चलने वाली हवा में उड़ रहे है. ये हवा हवाई का खेल ऐसे ही चलता रहता है हमारे देश में. बस शब्द बदलते रहते है १९७१ में ये 'गरीबी हटाओ ' बाद में दलित बढाओ हो गया चीज़े वाही है. न गरीबी हटी और न दलित बाधा. हा गरीबी हटाने कुछ खास लोग धनि ज़रूर हो गए और दलित बढाने में कुछ खास दलित ज़रूर आगे बढ़ गए. और हम लोगो ने इसमें बिशेश्ग्य हासिल कर ली है. बस ज़रुरत शुरुआत करने की है. ४००० करोड़ के मालिक मधु कोड़ा भी कहते है की मै आदिवासी हु इसलिए सताया जा रहा है. नोटों की माला पहनने वाली बहन कुमारी मायावती भी कहती है की वो दलित के बेटी है इसलिए सताया जा रहे है. या फिर क्रिकेट मैच फिक्स करने वाले मोहमद अज़हरुदीन कहते है की वो मुस्लिम है इसलिए सताया जा रहा हा . उपरी तौर पे ये साड़ी चीज़े बहु अलग नज़र आ रही पर सही बात ये है की ये सब हमारी भारतीय मानसिकता को बता रही है. ये वो लोग है जो हमारे भावनाओं का नेतृत्व करते है कभी राजनीतिज्ञ होकर तो कभी खिलाड़ी होकर. और जब ये ऐसी बाते कहते है तो इसका सीधा मायने है की वो जानते है की हमें कैसे ब्यवहार करना है. वो जानते है की 'आदिवासी ', 'दलित ' या 'मुस्लिम ' शब्द का प्रयोग करके वो अपने किसी भी पाप को छुपा सकते है और वो भी बहुत आसानी से. और दुर्भाग्य ये है की ये शब्द बढ़ाते जा रहे है. तो जब तक हम ऐसे ही दूसरो के हाथो 'ब्यवहार ' किये जाते रहेंगे तब तक भ्रस्टाचार रहेगा और उसे को भी बिधेयक कुछ नहीं कर पायेगा.
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